Today, with our team's visit to All Saints College, the preparations for CUND-7 (18.09.2013) concluded with great satisfaction . Yesterday we addressed students at Birla Vidya Mandir, St. Amtuls and St. Xeviers following up the issues of clean environment in Nainital and their hometowns elsewhere in our country for they come from various parts of India to study in calm environs of the Lake City Nainital. We have always tried to inculcate a sense of belonging among the children for the place where they live, study or work. How far we have succeeded in our endeavor, only time will tell. Surely, they show promise ...!
Tuesday, September 17, 2013
Saturday, September 14, 2013
CUND- 2013 तैयारी
St. Mary's |
CRST College |
Ashdale School |
Shaheed Sainik Vidyalaya |
आज CUND-2013 में St. Mary's, राजकीय बालिका इंटर कालेज, जीआईसी की विजिट के साथ इस वर्ष लगभग 5000 बच्चों से संवाद कर पाने की तसल्ली हासिल हुई । कई बच्चे जो इस मुहिम में 2007 से भागीदारी कर रहे हैं उनकी बातों और भावों से लगता है कि वो बड़ी भूमिका निभाने के लिए तैयार हैं। व्यक्तिगत स्तर पर वो सफ़ाई को अपनी आदतों में शुमार करने लक्षण दिखाते हैं, क्या वो रोज़ी-रोटी के प्रश्नों से जूझते, आपाधापी और गलाकाट प्रतिस्पर्धा के इस दौर में सेवा के संस्कार को भी अपने जीवन में आगे ले जा सकेंगे ?....अगर ऐसा होता है तो अपने कुछ विश्वास और मज़बूत होंगे.....।
Thursday, September 12, 2013
CUND-7 तैयारी
नैनीताल स्वच्छता/समुदाय दिवस 18 सित॰ के सिलसिले में आज हमारी टीम 4 स्कूलों में लगभग 2000 बच्चों और उनके अध्यापकों से मुख़ातिब हुई। प्रताप भैया के बाल सैनिकों से शहीद सैनिक विद्यालय में, मोहन लाल साह विद्या मंदिर की दोनों इकाइयों की संयुक्त सभा में, ऐश्डेल कन्या स्कूल सूखाताल और चेतराम साह ठुलघरिया इंटर कालेज में ये हमारी सातवीं सालाना विजिट थी। वो बच्चे भी थे जो 2007 में, जब ये आंदोलन आरंभ हुआ, दर्ज़ा 5 में पढ़ते थे और अब (2013 में) अपने स्कूल के फ़ाइनल वर्ष में थे। आशा तो बंधती है कि वो सफ़ाई और लड़ाई का संस्कार लेकर दुनिया से दो-चार होंगे...! (फ़ोटो सौजन्य-रोहित, टीम सदस्य)
Wednesday, September 11, 2013
नैनीताल स्वच्छता दिवस - 2013
Today
we started visiting schools as part of activities connected with
Clean-up Nainital Day, celebrated every year on 18 September, ever since
2007. Today we started with Long View Public School and then went to
Bishop shaw and St. Mary's Nirmala
School. As always, interacting with children was divine ! However, we
missed Remco Van Santen, the inspiration behind the drive. This year
Rohit and Devendra are the new activists in our team of Rajiv Da, Dinesh
Dandriyal,Yashpal Rawat, Vijay, Shruti and me. Some photos were
provided by Mrs. Tripathi, I'm posting for reference of my companions in
Nainital and Remco & Die in Australia and hence the post also in the
Angrezi.
A photo from CUND-2011@ Sainik School -Courtesy Remco ; My Clean India
Friday, September 6, 2013
एक जीत !
यह
हैरान करने वाली बात यह है कि भारतीय लोकतान्त्रिक व्यवस्था से सर्वाधिक लाभ उठाने वाले 6 मुख्य राजनीतिक दलों (कम्युनिस्टों समेत) ने, RTI के दायरे से बाहर रहने को एड़ी-चोटी का ज़ोर लगा दिया। इससे बचने को कानून संशोधन पर उतारू हो गये और
कांग्रेस ने अगुवाई करते हुए सहमति बनाकर कैबिनेट में पास करवा के अध्यादेश जारी कर दिया।
राजनीतिक दलों को RTI के दायरे में लाने को CIC की दलील यह थी कि दूसरे प्राधिकारों की तरह पार्टियां सरकारी सम्पत्तियों/अनुदानों/प्रचार माध्यमों का फ़ायदा लेती हैं तो RTI कानून के अंतर्गत अन्य सार्वजनिक संस्थाओं की तरह उनकी कार्यप्रणाली पर भी प्रश्न पूछे जा सकते हैं। अगर पार्टियां इस तर्क से सहमत नहीं थी तो उन्हें न्यायालय जाकर अपना पक्ष रखने में क्या हर्ज़ था ? सारी व्यवस्था और लोग समझ पाते कि आख़िर वो बाहर क्यों रहना चाहते हैं ? न्यायालय जाने के बजाय वो कार्यपालिका की ताकत के दंभ में संविधान संशोधन पर उतारू हो गए जिससे इस विषय पर अधिक संवाद न हो और जब संसद की स्वीकृति के लिए प्रस्ताव पेश हो तो पहले से बनी सहमति के आधार पर उसे पारित करना मात्र औपचारिकता रह जाए। गौरतलब है कि कोई अन्य संस्था अगर ये महसूस करे कि उसपर RTI कानून 2005 लागू नहीं होता तो वो कोर्ट जाएगी या कानून में संशोधन करवायेगी ? लोकतंत्रीय प्रणाली का इससे बड़ा मखौल क्या हो सकता है कि लोगों की ज़ुबान बंद करने को कैबिनेट प्रस्ताव पास कर डाले।
केन्द्रीय सूचना आयोग के राजनीतिक दलों को बेचैन कर देने वाले इस कदम के विरुद्ध लाये गए संशोधन के पास होते ही कल 5 सितंबर 2013 को राजनीतिक दलों की जनता के प्रति जवाबदेही का प्रश्न दफ्न हो गया होता, लेकिन ऐसा नहीं हुआ,प्रक्रिया टल गई और RTI एक्ट संशोधन बिल सदन की स्टैंडिंग कमेटी को भेज दिया गया। संसद में लोगों की एक छोटी सी जीत दर्ज़ हुई। हालाँकि पॉलिटिकल क्लास के हालिया चरित्र को देखते हुए उनके इरादों को भाँपना आसान नहीं है लेकिन जिस अंदाज़ में कुछ युवा नेताओं जैसे जय पांडा, उमर अब्दुल्ला, ममता बनर्जी और आम आदमी पार्टी ने इसका विरोध किया तथा सिविल सोसाइटी की अरुणा रॉय ने संशोधन के विरोध में सोनिया गांधी को अपनी राय दी उससे उम्मीद की जा सकती है की स्टैंडिंग कमेटी में भी ऐसी आवाज़ें उठेंगी और अपना प्रभाव डालेंगी ... ... कल पार्टियां आरटीआई के दायरे में आयें या न आयें पर क्या आप समझते हैं कि पारदर्शिता के प्रश्न पर इतने हिंसक हो जाने वाले हमारे नेतागण हमें लोकपाल जैसा जनपक्षीय कानून देंगे ?
राजनीतिक दलों को RTI के दायरे में लाने को CIC की दलील यह थी कि दूसरे प्राधिकारों की तरह पार्टियां सरकारी सम्पत्तियों/अनुदानों/प्रचार माध्यमों का फ़ायदा लेती हैं तो RTI कानून के अंतर्गत अन्य सार्वजनिक संस्थाओं की तरह उनकी कार्यप्रणाली पर भी प्रश्न पूछे जा सकते हैं। अगर पार्टियां इस तर्क से सहमत नहीं थी तो उन्हें न्यायालय जाकर अपना पक्ष रखने में क्या हर्ज़ था ? सारी व्यवस्था और लोग समझ पाते कि आख़िर वो बाहर क्यों रहना चाहते हैं ? न्यायालय जाने के बजाय वो कार्यपालिका की ताकत के दंभ में संविधान संशोधन पर उतारू हो गए जिससे इस विषय पर अधिक संवाद न हो और जब संसद की स्वीकृति के लिए प्रस्ताव पेश हो तो पहले से बनी सहमति के आधार पर उसे पारित करना मात्र औपचारिकता रह जाए। गौरतलब है कि कोई अन्य संस्था अगर ये महसूस करे कि उसपर RTI कानून 2005 लागू नहीं होता तो वो कोर्ट जाएगी या कानून में संशोधन करवायेगी ? लोकतंत्रीय प्रणाली का इससे बड़ा मखौल क्या हो सकता है कि लोगों की ज़ुबान बंद करने को कैबिनेट प्रस्ताव पास कर डाले।
केन्द्रीय सूचना आयोग के राजनीतिक दलों को बेचैन कर देने वाले इस कदम के विरुद्ध लाये गए संशोधन के पास होते ही कल 5 सितंबर 2013 को राजनीतिक दलों की जनता के प्रति जवाबदेही का प्रश्न दफ्न हो गया होता, लेकिन ऐसा नहीं हुआ,प्रक्रिया टल गई और RTI एक्ट संशोधन बिल सदन की स्टैंडिंग कमेटी को भेज दिया गया। संसद में लोगों की एक छोटी सी जीत दर्ज़ हुई। हालाँकि पॉलिटिकल क्लास के हालिया चरित्र को देखते हुए उनके इरादों को भाँपना आसान नहीं है लेकिन जिस अंदाज़ में कुछ युवा नेताओं जैसे जय पांडा, उमर अब्दुल्ला, ममता बनर्जी और आम आदमी पार्टी ने इसका विरोध किया तथा सिविल सोसाइटी की अरुणा रॉय ने संशोधन के विरोध में सोनिया गांधी को अपनी राय दी उससे उम्मीद की जा सकती है की स्टैंडिंग कमेटी में भी ऐसी आवाज़ें उठेंगी और अपना प्रभाव डालेंगी ... ... कल पार्टियां आरटीआई के दायरे में आयें या न आयें पर क्या आप समझते हैं कि पारदर्शिता के प्रश्न पर इतने हिंसक हो जाने वाले हमारे नेतागण हमें लोकपाल जैसा जनपक्षीय कानून देंगे ?
Tuesday, September 3, 2013
आनंद
नैना ज्योति संस्था 2001 से नैनीताल में निःशुल्क आँखों का शिविर लगाती आ रही है। सामान्य जांच के साथ इस कैंप में नई तकनीक से मोतियाबिंद के ऑपरेशन किए जाते हैं। हर साल नैनीताल, आसपास और सुदूर गाँवों से आए वृद्धजन इस शिविर के चलते आँखों के जाले से मुक्ति पाकर खुशी-खुशी,आशीर्वाद देते अपने घरों को लौटते हैं। इस बार ग्रामीण क्षेत्र के रोगियों की सुविधा के लिये कैंची, नथुवाखान और छोई (रामनगर) में भी OPD की गयी। यह पूरा शिविर कैंची आश्रम ट्रस्ट की आर्थिक मदद से किया जा रहा है। लगभग 1500 लोगों ने अपना इलाज करवाया। दुबारा दुनिया को साफ़-साफ़ देख पाने के उनके आनंद का हम अनुमान ही लगा सकते हैं।
इस वर्ष मोतिया आप्रेशन हेतु 191 पंजीकरण हुए हैं। आज 50 आप्रेशन हुए, बाकी कल से होंगे। आशीर्वाद और साधुवाद की पात्र डाक्टरों की टीम डा॰ विनोद तिवारी के नेतृत्व में अनुभवी डा॰ ललित रस्तोगी, डा॰ नवीन शर्मा, डा॰ भगत राम, डा॰ संजय सक्सेना और वरिष्ठ तकनीकी सहयोगियों अनुज, गुलशन, गोविंद आदि, नैना ज्योति के स्वयंसेवकों सर्वश्री विनोद पांडे, पेमा गेकिल सिथार, माधवानंद मैनाली, योगेश साह, राजीव लोचन साह, अरुण रौतेला, मंजू पांडे, मेधा पांडे, भगवती लोहनी, ह.स. रावत, कन्हैया साह, घनश्याम साह, नरेंद्र पाल, दीप गंगोला जी और अन्य मित्रगण सुबह से शाम तक जुट कर इस मानवीय अनुष्ठान को सफल बनाते हैं।
इस वर्ष मोतिया आप्रेशन हेतु 191 पंजीकरण हुए हैं। आज 50 आप्रेशन हुए, बाकी कल से होंगे। आशीर्वाद और साधुवाद की पात्र डाक्टरों की टीम डा॰ विनोद तिवारी के नेतृत्व में अनुभवी डा॰ ललित रस्तोगी, डा॰ नवीन शर्मा, डा॰ भगत राम, डा॰ संजय सक्सेना और वरिष्ठ तकनीकी सहयोगियों अनुज, गुलशन, गोविंद आदि, नैना ज्योति के स्वयंसेवकों सर्वश्री विनोद पांडे, पेमा गेकिल सिथार, माधवानंद मैनाली, योगेश साह, राजीव लोचन साह, अरुण रौतेला, मंजू पांडे, मेधा पांडे, भगवती लोहनी, ह.स. रावत, कन्हैया साह, घनश्याम साह, नरेंद्र पाल, दीप गंगोला जी और अन्य मित्रगण सुबह से शाम तक जुट कर इस मानवीय अनुष्ठान को सफल बनाते हैं।
Saturday, August 31, 2013
पलायन रुकेगा !
पलायन रुकेगा !
उत्तराखंड में 8500 सरकारी सस्ते गल्ले की दुकानें हैं। अब जब कि खाद्य
सुरक्षा कानून के अंतर्गत 62% जनता के लिए आनाज इन दुकानों से बँटेगा तो
कालाबाजारी और बढ़ेगी। ईमानदारी से 10% मुनाफ़ा कमाते
हुए हर दुकान से लगभग 30,000 रुपये प्रति माह की औसत आमदनी होती है। समय आ
गया है कि सस्ते गल्ले की ये सरकारी दुकानें स्थानीय बेरोज़गारों की सहकारी
समितियों को आबंटित की जाएँ जिससे पहाड़ों से रोजगार की तलाश में पलायन कर
रहे लोगों को अपने गाँव/कस्बों में स्थायी रोज़गार के रूप में राहत मिले।
इस योजना से 8000/- रुपए प्रति माह (यह मानते हुए कि एक 3-4 सदस्यीय परिवार
को सम्मानजनक ज़िंदगी बिताने के लिए लगभग 8000/- रुपए की आवश्यकता होती है )
एक परिवार/सदस्य को दिया जाए तो लगभग 32,000 परिवारों को लाभान्वित किया
जा सकता है। इससे पलायन शर्तियाँ रुकेगा और बहुत से जरूरतमंदों की संस्था
होने से कालाबाज़ारी की संभावना समाप्त हो जाएगी।
एक और सरकारी दुकानें हैं जहां लोग लाइन लगा कर सामान खरीदते हैं और इनका आबंटन पूरी तरह से राज्य सरकार के हाथ है। ये हैं उत्तराखंड सरकार की शराब की 430 दुकानें। इनसे सरकार खुद प्रतिवर्ष 1200 करोड़ का राजस्व कमाती है...तो शराबबंदी तो होने से रही। एक अनुमान के अनुसार ईमानदारी से 20% मुनाफा लेते हुए हर दुकान औसतन कम से कम 6 लाख रुपया प्रति माह कमा कर देती है। अगर गल्ले की तरह ही औसत 75 सदस्यों की समिति को एक दुकान आबंटित कर दी जाए तो हर सदस्य को 8000/- रुपया महिना मिलेगा। इसके माध्यम से 32,250 परिवार लाभान्वित हो सकते हैं ।
दूसरे शब्दों में कहूँ तो पीडीएस को जनपक्षीय बना दिया जाए तो आज राज्य की बड़ी समस्याओं, बेरोजगारी और पलायन से 100% लड़ा जा सकता है।
एक और सरकारी दुकानें हैं जहां लोग लाइन लगा कर सामान खरीदते हैं और इनका आबंटन पूरी तरह से राज्य सरकार के हाथ है। ये हैं उत्तराखंड सरकार की शराब की 430 दुकानें। इनसे सरकार खुद प्रतिवर्ष 1200 करोड़ का राजस्व कमाती है...तो शराबबंदी तो होने से रही। एक अनुमान के अनुसार ईमानदारी से 20% मुनाफा लेते हुए हर दुकान औसतन कम से कम 6 लाख रुपया प्रति माह कमा कर देती है। अगर गल्ले की तरह ही औसत 75 सदस्यों की समिति को एक दुकान आबंटित कर दी जाए तो हर सदस्य को 8000/- रुपया महिना मिलेगा। इसके माध्यम से 32,250 परिवार लाभान्वित हो सकते हैं ।
दूसरे शब्दों में कहूँ तो पीडीएस को जनपक्षीय बना दिया जाए तो आज राज्य की बड़ी समस्याओं, बेरोजगारी और पलायन से 100% लड़ा जा सकता है।
Thursday, August 29, 2013
'अक्कड़-बक्कड़'
फ़ेसबुक पर उत्तराखंड सरकार के आपदा प्रबंधन में बरते गए नाकारेपन को दिखाती एक पोस्ट पर टिप्पणी करते हुए मैंने
लिख दिया था--"वो (कांग्रेसी) चैन से बीजेपी के साथ अक्कड़-बक्कड़ खेल रहे
थे कि आपदा ने अचानक आकर खेल में खलल डाल दिया। उन्होने ऐसी कड़ी परीक्षा के लिए थोड़ी न सरकार
बनाई थी...।" मेरे छोटे बेटे ने अपनी पीढ़ी में 'अक्कड़-बक्कड़' न खेला न
सुना, सो मुझसे पूछ लिया, "ये क्या खेल है पापा ?" उसे ज़ुबानी समझाया पर उसके हमउम्र, अपने युवा दोस्तों को भी
मुझे जवाब देना ही चाहिए--
इस खेल में बच्चे एक गोला बनाकर खड़े होते हैं और एक बच्चा अपने बगल वालों पर क्रमश: उंगली रखता गाता है; अक्कड़-बक्कड़ बॉम्बे ब अस्सी नब्बे पूरे सौ, सौ में लगा ताला, चोर निकाल के भा--गा ! वो हर शब्द या अक्षर पर अपनी उंगली को अगले बच्चे पर रखता हुआ जिस पर गीत खत्म (भा-गा) करता है, उसे खेल से बाहर होना पड़ता है और वो बाहर बैठ कर खेल देखता हुआ, अपनी अगली बारी का इंतज़ार करता है।
मेरा मतलब बहुमत का जुगाड़ बना कर चलती सरकार और रस्म अदायगी करता विपक्ष समय काट ही लेते। दुर्भाग्य से आपदा ने रविवार 16 जून '13 को अचानक आकर चौंका दिया...नई चुनौतियों का सामना वो क्या करते जो येन केन प्रकारेण कुर्सी हासिल किए बैठे हों और नौकरशाहों के साथ मिलकर पैसा बनाने में लगे हों !
सुना है आपदा राशि को ठिकाने लगाने के हक़ पर मुख्य मंत्री और आपदा मंत्री के बीच मनमुटाव हो गया, कल विपक्षी इस पर लोकोक्तीय श्वेत-पत्र मांगें तो किसीको आश्चर्य नहीं होना चाहिए क्योंकि उनका तो हिस्सा तय नहीं किया गया ...अक्कड़-बक्कड़ बॉम्बे ब अस्सी नब्बे पूरे सौ, सौ में लगा ताला, चोर निकाल के भा--गा !
इस खेल में बच्चे एक गोला बनाकर खड़े होते हैं और एक बच्चा अपने बगल वालों पर क्रमश: उंगली रखता गाता है; अक्कड़-बक्कड़ बॉम्बे ब अस्सी नब्बे पूरे सौ, सौ में लगा ताला, चोर निकाल के भा--गा ! वो हर शब्द या अक्षर पर अपनी उंगली को अगले बच्चे पर रखता हुआ जिस पर गीत खत्म (भा-गा) करता है, उसे खेल से बाहर होना पड़ता है और वो बाहर बैठ कर खेल देखता हुआ, अपनी अगली बारी का इंतज़ार करता है।
मेरा मतलब बहुमत का जुगाड़ बना कर चलती सरकार और रस्म अदायगी करता विपक्ष समय काट ही लेते। दुर्भाग्य से आपदा ने रविवार 16 जून '13 को अचानक आकर चौंका दिया...नई चुनौतियों का सामना वो क्या करते जो येन केन प्रकारेण कुर्सी हासिल किए बैठे हों और नौकरशाहों के साथ मिलकर पैसा बनाने में लगे हों !
सुना है आपदा राशि को ठिकाने लगाने के हक़ पर मुख्य मंत्री और आपदा मंत्री के बीच मनमुटाव हो गया, कल विपक्षी इस पर लोकोक्तीय श्वेत-पत्र मांगें तो किसीको आश्चर्य नहीं होना चाहिए क्योंकि उनका तो हिस्सा तय नहीं किया गया ...अक्कड़-बक्कड़ बॉम्बे ब अस्सी नब्बे पूरे सौ, सौ में लगा ताला, चोर निकाल के भा--गा !
भाप
मित्रो मेरा ब्लॉग (garampani....) जो 2010 से नेट पर था, अचानक हटा दिया गया। इससे किसको आपत्ति थी, किस वजह से थी आदि जैसे कई प्रश्नों के उत्तर शायद भविष्य में मिलें। मेरा मानना है कि मेरी बौद्धिक सम्पदा को खुर्द-बुर्द किया गया है, जिसके विरुद्ध अपने विद्वान मित्रों की सलाह लेकर कानूनी कार्यवाही करूंगा। लिखना तो बंद नहीं किया जा सकता अपने हटाये गए ब्लॉग garampani (गरमपानी) के स्थान पर नया ब्लॉग panikibhaap.blogspot.com (पानीकीभाप.ब्लॉग्स्पॉट.कॉम) पर फ़िलहाल 29 अगस्त '13 से शुरू कर रहा हूँ । पिछले आलेखों को ढूंढ कर लगाने का प्रयास करूंगा। आपसे हमेशा की तरह प्रोत्साहन और स्नेह मिलने का विश्वास है।....उत्तराखंड में बेरोज़गारी और पलायन बड़ी समस्याएँ हैं, उनको प्राथमिकता देना चाहता हूँ-
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