Saturday, August 31, 2013

पलायन रुकेगा !


                                                             पलायन रुकेगा ! 
उत्तराखंड में 8500 सरकारी सस्ते गल्ले की दुकानें हैं। अब जब कि खाद्य सुरक्षा कानून के अंतर्गत 62% जनता के लिए आनाज इन दुकानों से बँटेगा तो कालाबाजारी और बढ़ेगी। ईमानदारी से 10% मुनाफ़ा कमाते हुए हर दुकान से लगभग 30,000 रुपये प्रति माह की औसत आमदनी होती है। समय आ गया है कि सस्ते गल्ले की ये सरकारी दुकानें स्थानीय बेरोज़गारों की सहकारी समितियों को आबंटित की जाएँ जिससे पहाड़ों से रोजगार की तलाश में पलायन कर रहे लोगों को अपने गाँव/कस्बों में स्थायी रोज़गार के रूप में राहत मिले। इस योजना से 8000/- रुपए प्रति माह (यह मानते हुए कि एक 3-4 सदस्यीय परिवार को सम्मानजनक ज़िंदगी बिताने के लिए लगभग 8000/- रुपए की आवश्यकता होती है ) एक परिवार/सदस्य को दिया जाए तो लगभग 32,000 परिवारों को लाभान्वित किया जा सकता है। इससे पलायन शर्तियाँ रुकेगा और बहुत से जरूरतमंदों की संस्था होने से कालाबाज़ारी की संभावना समाप्त हो जाएगी।

एक और सरकारी दुकानें हैं जहां लोग लाइन लगा कर सामान खरीदते हैं और इनका आबंटन पूरी तरह से राज्य सरकार के हाथ है। ये हैं उत्तराखंड सरकार की शराब की 430 दुकानें। इनसे सरकार खुद प्रतिवर्ष 1200 करोड़ का राजस्व कमाती है...तो शराबबंदी तो होने से रही। एक अनुमान के अनुसार ईमानदारी से 20% मुनाफा लेते हुए हर दुकान औसतन कम से कम 6 लाख रुपया प्रति माह कमा कर देती है। अगर गल्ले की तरह ही औसत 75 सदस्यों की समिति को एक दुकान आबंटित कर दी जाए तो हर सदस्य को 8000/- रुपया महिना मिलेगा। इसके माध्यम से 32,250 परिवार लाभान्वित हो सकते हैं ।
दूसरे शब्दों में कहूँ तो पीडीएस को जनपक्षीय बना दिया जाए तो आज राज्य की बड़ी समस्याओं, बेरोजगारी और पलायन से 100% लड़ा जा सकता है।

Thursday, August 29, 2013

'अक्कड़-बक्कड़'

                     फ़ेसबुक पर उत्तराखंड सरकार के आपदा प्रबंधन में बरते गए नाकारेपन को दिखाती एक पोस्ट पर टिप्पणी करते हुए मैंने लिख दिया था--"वो (कांग्रेसी) चैन से बीजेपी के साथ अक्कड़-बक्कड़ खेल रहे थे कि आपदा ने अचानक आकर खेल में खलल डाल दिया। उन्होने ऐसी कड़ी परीक्षा के लिए थोड़ी न सरकार बनाई थी...।"  मेरे छोटे बेटे ने अपनी पीढ़ी में 'अक्कड़-बक्कड़' न खेला न सुना, सो मुझसे पूछ लिया, "ये क्या खेल है पापा ?" उसे ज़ुबानी समझाया पर उसके हमउम्र, अपने युवा दोस्तों को भी मुझे जवाब देना ही चाहिए--
                    इस खेल में बच्चे एक गोला बनाकर खड़े होते हैं और एक बच्चा अपने बगल वालों पर क्रमश: उंगली रखता गाता है; अक्कड़-बक्कड़ बॉम्बे ब अस्सी नब्बे पूरे सौ, सौ में लगा ताला, चोर निकाल के भा--गा ! वो हर शब्द या अक्षर पर अपनी उंगली को अगले बच्चे पर रखता हुआ जिस पर गीत खत्म (भा-गा) करता है, उसे खेल से बाहर होना पड़ता है और वो बाहर बैठ कर खेल देखता हुआ, अपनी अगली बारी का इंतज़ार करता है।
      मेरा मतलब बहुमत का जुगाड़ बना कर चलती सरकार और रस्म अदायगी करता विपक्ष समय काट ही लेते। दुर्भाग्य से आपदा ने रविवार 16 जून '13 को अचानक आकर चौंका दिया...नई चुनौतियों का सामना वो क्या करते जो येन केन प्रकारेण कुर्सी हासिल किए बैठे हों और नौकरशाहों के साथ मिलकर पैसा बनाने में लगे हों !
        सुना है आपदा राशि को ठिकाने लगाने के हक़ पर मुख्य मंत्री और आपदा मंत्री के बीच मनमुटाव हो गया, कल विपक्षी इस पर लोकोक्तीय श्वेत-पत्र मांगें तो किसीको आश्चर्य नहीं होना चाहिए क्योंकि उनका तो हिस्सा तय नहीं किया गया ...अक्कड़-बक्कड़ बॉम्बे ब अस्सी नब्बे पूरे सौ, सौ में लगा ताला, चोर निकाल के भा--गा !

भाप

मित्रो मेरा ब्लॉग (garampani....) जो 2010 से नेट पर था, अचानक हटा दिया गया। इससे किसको आपत्ति थी, किस वजह से थी आदि जैसे कई प्रश्नों के उत्तर शायद भविष्य में मिलें। मेरा मानना है कि मेरी बौद्धिक सम्पदा को खुर्द-बुर्द किया गया है, जिसके विरुद्ध अपने विद्वान मित्रों की सलाह लेकर कानूनी कार्यवाही करूंगा। लिखना तो बंद नहीं किया जा सकता अपने हटाये गए ब्लॉग garampani (गरमपानी) के स्थान पर नया ब्लॉग panikibhaap.blogspot.com (पानीकीभाप.ब्लॉग्स्पॉट.कॉम) पर फ़िलहाल 29 अगस्त '13 से शुरू कर रहा हूँ । पिछले आलेखों को ढूंढ कर लगाने का प्रयास करूंगा।  आपसे हमेशा की तरह  प्रोत्साहन और स्नेह मिलने का विश्वास है।....उत्तराखंड में बेरोज़गारी और पलायन बड़ी समस्याएँ हैं, उनको प्राथमिकता देना चाहता हूँ-