Friday, November 16, 2018

Pancheshwar Dam


पंचेश्वर डाम निधरौ हमार मुनव में

ये सौदा है घाटे का
जो डूब रहा वो सोना है। 

गोलज्यू की जागर है इसमें,
कबूतरी के गीत, 
झूसीया का इसमें हुड़का 
रीठागाड़ी का संगीत।
ये सौदा है घाटे का, जो डूब रहा वो सोना है।। 

मिलती थी जो आपस में, 
नदी, नदी में डूब रही है,
रामगंगा, महाकाली में, 
पनार, सरयू ढूंढ रही है।
ये सौदा है घाटे का, जो डूब रहा वो सोना है।।

धेई, चाख सब डूब रहे हैं,
समेऊ, बनफ्शा डूब रहा है, 
आकाश की गेठी,
पाताल का तैड़ डूब रहा है, 
बांज, बुरांश - काफल, किल्मोड़ा, 
पुराना जंगल डूब रहा है।।
ये सौदा है घाटे का, जो डूब रहा वो सोना है।। 

दमवाँ, नगाड़ा, निशाण,
धूणी और तिथाण,
ऐड़ी बाराही के थान,
हिमालय का रामेश्वर डूब रहा है।।

ये सौदा है घाटे का, 
जो डूब रहा वो सोना है,
मारी गई है मति तुम्हारी,
ये उत्तराखंड का रोना है। 
ये सौदा है घाटे का, जो डूब रहा वो सोना है।।
                            उमेश तिवारी 'विश्वास'
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Saturday, November 3, 2018

परिया का नज़रिया

पेश है सफ़ाई पर - 'परिया का नज़रिया'-
उमेश तिवारी ‘विश्वास’

सफ़ाई और स्वास्थय संबंधी कुछ जागरूकतायें अपने परिया के अन्दर  बचपन से ही भरी पड़ी हैं. उनमें से एक है; पेशाब को कभी रोक कर नहीं रखना चाहिए. जब उसे कचहरी में आ पड़ी, तो उसने सी.जे.ऍम. कोर्ट की दीवार की आड़ में निपटा दी. चलती बस में ‘आने’ पर उसने बस रुकवाई और कल्वट की पिछाड़ी बैठ गया. नैनीताल की ठंडी सड़क पर वह ताल की ओर पीठ करके फ़ारिग हो लिया. उसे बताया गया था कि वक़्त पर पेशाब करना और थूकना बहुत ज़रूरी है. इन क्रियाओं को अपनी इच्छा और ज़रुरत के हिसाब से जितनी बार चाहो किया जा सकता है. सावधानी सिर्फ इतनी कि आपको कोई देखता ना हो. धरती माता की सोखन शक्ति पर परिया को इतना भरोसा था जितना सोनियां को मनमोहन पर भी नहीं रहा होगा. परिया समझता था कि वो ‘बहुत कुछ’ करता है पर गंदगी नहीं. आज तक उसे गंदगी करते किसी ने देखा भी नहीं था, देखा होता तो बताता.

परिया ने सीखा था कि जलती बीड़ी को जंगल में फेंकने से आग का खतरा रहता है. जलती ठुड्डी को उसने आज तक, जंगल तो क्या डामर की रोड पर भी नहीं फेंका था. उसने ठुड्डी को दीवारों, फर्नीचर से लेकर फर्श पर भी कुचल कर बुझाया था. इन सभी स्थलों पर बीड़ी बुझाने से बने निशानों के प्रति परिया उतना ही लापरवाह था जितना भाजपा सरकार नेता प्रतिपक्ष के मुद्दे पर है. उसका मन जानता था कि बीड़ी से उसके अपने कल्जे के अलावा आज तक कहीं भी आग नहीं लगी.

थूकने से पहले परिया अपनी एक हथेली को जैहिन्द की मुद्रा में होंठों के कोने पर लगा लेता है. दायीं ओर थूकने के लिए जैहिन्द मुद्रा होंठों के बायें कोने और बायीं ओर थूकने के लिए दायीं ओर बना लेता है. थूक नज़दीक न गिरे इसलिए वो ज़ोर की आवाज़ के साथ इस क्रिया को करता है, जैसे कोई ट्रैक्टर खरखराकर चालू हो और फिर बंद हो जाये.

परिया के जीवन में एक दिन अचानक रेल का टॉयलेट आया. अब तक की भोगी उमर में उसके द्वारा लूटी गयी ये सर्वाधिक टिप-टॉप सुविधा थी. चारों तरफ से बंद, चिटकनी लगा दरवाज़ा, पानी का नल और जाने क्या देखने को लगा एक शीशा भी. छेद से पटरियों के बीच दीखते पत्थर, जिनसे परिया को भरोसा बना रहा कि वो धरती पर ही बैठा हुआ है. रेल में हुआ तो क्या? पर फिर भी उसे सज नहीं आई, धार से उत्पन बुलबुले देखने और मिट्टी के गुर्राने का स्वर सुनने का कुछ और ही मज़ा है.

आज परिया तथाकथित गंदगी करने जा ही रहा था कि उसके कान में आवाज़ पड़ी, “न करूँगा, न करने दूंगा”. ये आवाज़ उसी रेडियो से आ रही थी जो बरसों से उसे ‘बीड़ी जलाइले जिगर से पिया’ सुनाता रहा है. उसे यकीन नहीं हुआ कि फरमाइशी प्रोग्राम सुनाने वाले रेडियो का इस्तेमाल उस पर नज़र रखने के लिए भी किया जा सकता है. प्रधान मंत्री की आवाज़ इतनी रौबीली थी कि उसके हाथ जहाँ थे, वहीँ जाम हो गए. पाँव जैसे धरती में गड़ गए. पैजामा गीला जैसा हो गया. आवाज़ अब भी आ रही थी, “मैं पिछले तीन साल से आपसे मन की बात कर रहा हूँ...” परिया का मन हुआ डायरेक्ट पूछ ले, “तन की बात कब करोगे ? साल में एक बार भी कर लेते तो काफ़ी रहता.” लेकिन ये कैसे संभव था, परिया का न तो रेडियो पर कंट्रोल था और न ही आवाज़ रुपी प्रधानमंत्री पर. वह समझ नहीं पा रहा था कि करे तो क्या? इसी उधेड़बुन में उसने बीड़ी जला ली. ज़ोर का सुट्टा मारा तो खांसी आ गई. थूकने को हुआ, तो लगा रेडियो घूर रहा है. अब परिया का सर चकरा रहा था. वो ख़ुद से आज़ादी के मायने पूछ रहा था. काफ़ी दूर तक चलने के बाद भी उसे थूकने लायक जगह नहीं दिखी या हर जगह इसी लायक थी. रेडियो की आवाज़ लगातार उसके कानों में पड़ रही थी, “आप स्वयं सफ़ाई रखें और इससे भी ज़रूरी है कि दूसरों से भी सफ़ाई रखने का आग्रह करें....” परिया पर इस वाक्य का जादुई असर हुआ. उसने महसूस किया कि ख़ुद करने से आसान है, दूसरों से करने का आग्रह करना. परिया ने पच्च से रोड पर थूका और दो कदम चलने के बाद बीड़ी की ठुड्डी को ज़मीन पर पटक कर इतनी जोर से रगड़ा कि चप्पल का फीता निकल आया. टूटी चप्पल को हाथ में उठा कर उसने जयकारा सा लगाया, “न करूँगा न करने दूंगा”.